रिश्तों का दोहरापन | नेहा शर्मा


तुम लिखते हो 
मै  चुपके से पढ़ती हूँ 
हर शब्दों में खुद को तराशती हूँ 
हर शब्दों के अर्थ ढूंढ़ती हूँ 
उनमे छिपे तुम्हारे एहसास को तराशती हूँ 
मगर मै हार जाती हूँ हर बार 
और बार बार ..!!

शायद उस रोज भी मुझे धोका हुआ था 
तुम्हारे साथ बैठ  जो चाय पी उसे फीका पाया था 
उस वक़्त जो हवा चल रही थी वो मेरी गलतफ़हमी थी 
तुम्हे तो मेरा नहीं बल्कि हर वक़्त अपने अहम का ही  ख्याल आया था ..!!

तुम्हे कभी खुद से ऊपर कुछ करते नहीं पाया 
तुम मेरी ख्वाहिश नहीं हो पर न जाने क्यू मैंने तुममे ही खुद को पाया 
इसके पीछे जरूर कोई राज होगा 
शायद कोई कर्ज  छिपा होगा ..!!

लेकिन कब तक ये छिपा छिपी चलेगी 
सच बात एक रोज तो निकलेगी 
मै  उस वक़्त का इन्तेजार करती हूँ 
इन सारे लफ्जों को मै हर रोज महसूस  करती हूँ 

मगर आज मै खुश हूँ 
की तुम आज भी अकेले हो 
तुम्हारे बहरूपिये से कोई मोहित हो जाएगा 
मगर उन चाय की चुश्कियों में तुम्हारी असलियत जरूर समझ जाएगा ..!!

हर चमकती चीज सोना नहीं होती 
हर अच्छी  दिखने वाली चीज अच्छी  नहीं होती 
कभी कभी लोग अच्छा बनने का ढोंग करते हैं 
और उसी ढोंग में अपना सारा सफ़र काट देते हैं ..

पर उस एक मौके से हर कोई तुम्हे पकड़ लेगा 
और तुम्हारे अस्तित्व से परिचित हो जाएगा .!!


#S.Neha(Stand alone to prove that i can stand alone)

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