जिंदगी बेच रहे हैं
यहं लोग शब्दों में भावनाए बांध कर बेच रहे हैं
कैसी निराह्स्ता है और कैसी बेबसी है
हमने उनकी मदद करने की सोची तो
वो हमें ही खरीद रहे हैं ,
कैसे जीएंगे वो जो पैदा हो गए हैं
उन्हें जिन्हें ये भी नहीं पता की वो कौन हैं ,उनका घर वो अब उन्ही के सामने बेच रहे हैं
अब बंद कर दो ये हत्या भावनाओ की और ये पैसों का लोभ
अब ख़तम कर दो ये झूठ और फरेब का दोष
हर दिन बदलता है और हर रात की शाम है
कहीं ऐसा न हो की ये लोभ का दानव तुम्हे खा जाये
और पैसों का अहंकार तुम्हे तुम्हारे ही समाने भिकारी बना दे
आज जिन चीजों पे इतराते हो
और जिन चीजों पे मंडराते हो
वो चीजें केवल पल भर की है
साथ कुछ रखना ही है तो रखो अपनों का प्यार
कहीं इतनी देर न हो जाये
की तुम्हारे अपने ही तुम्हे भूल जाएँ
और कर दे तुम्हारा ही तिरश्कार..............
Neha Sharma